निशानी
समझ नहीं आता की क्या कर डालूँ मैंतुम्हें बदलने की कोशिश करूं या खुद को बदल डालूँ मैं
अब और यही दर्द नहीं सहा जाता मुझसे
दम तोड़ने दूं या खुद को सम्हालूँ मैं
जाने कब से बरसने को तरसते हैं बादल
रोकूँ उन्हें या अपना दामन भीगा डालूँ मैं
जीने नहीं देती, पर तेरी यही एक निशानी बाकी है
इस दर्द को सीने से क्या सोच के निकालूँ मैं
Shubhashish